Wednesday, January 8, 2014

मेरे अल्फ़ाज़ की आवाज़

कुछ अनकही बातें,
कुछ अनसुनी बातें,
जो मैं कह न सका जो तुम सुन न सकी ,
जाने क्यूँ अब ये अल्फाज़ो  को ढूंढ़ते है!!!

कभी आकर मेरे कविता से तो, कभी आकर मेरे शब्दो से लड़ पड़ते है ,
कभी मेरे सिरहाने आकर सो जाते, तो कभी आशु बनकर निकल पड़ते है।

कभी लगता है इन अल्फाज़ो को कब्र मे दफ़नाउ,
मगर यहाँ इनके दम घुटने लगते है।

क्या करू इन अल्फ़ाज़ों का अब ?
"ये भी तो मेरे सपनो का ही हिस्सा है"
एक असे सपने जो अंत तक है , मेरे आखरी सास तक है
वो बात अलग है कि ये अलफ़ाज़ आज तन्हा है
बिलकुल मेरी तरह। ..........
न ख़तम होने वाली यादों कि तरह। .....