Thursday, January 23, 2014

बाज़ार मे कोई नया नेता आया है .......

सुना है
बाज़ार  मे कोई नया नेता आया है
अपनी बात मनवाने क लिए
रूठ कर खाना छोड़ देता है

अजीब विडंबना है देश का
सोचता हूँ अगर यूँ ही खाने छोड़ देने से देश कि प्रगति हो
तो क्यूँ न देश कि जनता को उपवास कराया जाए

अगर अनसन से लूटी इज्जत वापिस आ जाए
या देश का कला धन आ जाए
या फिर जमाखोर ईमानदार बन जाए
या  घोटाले के लोग ईमानदार बन जाए

कौन समझाए इसे देश कि बच्चे को
क्यूँ सुनायी नहीं देता देश के लोगो कि शिश्किया

हाँ, अनसन से आप नेता बन सकते है
मगर आप इंसान है ये खुद से पूछ लीजिये?
"यहाँ अब अनसन कि नहीं , परिवर्तन कि जरुरत है"
ये "आप" और "मैं" या "सारा समाज" मिलकर ला आ सकता है

देश को आज लूट रहा नक्सल है
कर रहा बलात्कार पडोसी मुल्क है
और हम लड़ रहे है सता क लिए
किसी भी मुल्क़ कि प्रगति अनसन से नहीं होता है
कोई समझाए इसे बाज़ार क नेता को 

Wednesday, January 8, 2014

मेरे अल्फ़ाज़ की आवाज़

कुछ अनकही बातें,
कुछ अनसुनी बातें,
जो मैं कह न सका जो तुम सुन न सकी ,
जाने क्यूँ अब ये अल्फाज़ो  को ढूंढ़ते है!!!

कभी आकर मेरे कविता से तो, कभी आकर मेरे शब्दो से लड़ पड़ते है ,
कभी मेरे सिरहाने आकर सो जाते, तो कभी आशु बनकर निकल पड़ते है।

कभी लगता है इन अल्फाज़ो को कब्र मे दफ़नाउ,
मगर यहाँ इनके दम घुटने लगते है।

क्या करू इन अल्फ़ाज़ों का अब ?
"ये भी तो मेरे सपनो का ही हिस्सा है"
एक असे सपने जो अंत तक है , मेरे आखरी सास तक है
वो बात अलग है कि ये अलफ़ाज़ आज तन्हा है
बिलकुल मेरी तरह। ..........
न ख़तम होने वाली यादों कि तरह। .....