कहाँ ढूंढ़ती हो मुझे अब तुम
उन किताबो के पन्नो मे, जो पीले पड़ गये है
या उन फूलो के पँखुड़ियों मे, जो अब सूख चुके है
या उन यादों मे जो अब तुम्हारे होकर भी तुम्हारे नहीं है।
मैं तो तुम्हारे संग हूँ। …
ढूंढो तो सही....
जब तुम नहा के आती हो उन गीले बालो के खूसबू मे....
जब तुम मुस्कुराती हो तो उस मुस्कान मे...
या फिर तुम्हारे निम्बू के चटकारों मे....
जब तुम थक कर सोती हो तो उस नींद मे "मैं"हूँ।
कहाँ से निकलोगी तुम मुझे
मैं तो एक गंदा रूह हूँ , जो तेरे जिस्म मे हूँ।
जेसे देश कि नेता खा रहे है देश को
वेसे मैं तेरे जिस्म को चबाए जा रहा हूँ।
न मैं मर सकता हूँ
न तुम मार सकती हो
मैं अब यमुना नदी कि पानी कि तरह हूँ
जिस पानी को सरकार सदियो से साफ़ कर रहे है
मैं वही गंदा रूह हूँ , जिसे तुम नोच कर फेकना चाहती हो।
मैं जानता हूँ , मैं तुम मे हूँ। …
तेरे जज्बातो से खेलता हूँ हर रोज़
जेसे देश कि नेता जनता से खेलते है
न तुम मुझे निकाल सकती हो
न देश नेता को बदल सकते है।