खूब मिल बैठेंगे दो कवी
किसी गरीब खाने मे
पी रहे होंगे आधी आधी चाय
किसी टूटी आशियाने मे
गुजरते लोग सोचेंगे कितना है हम आवारा
मगर वो क्या जाने दर्द ए दिल इसे ज़माने मे ,
रात होगी कब्र बन जायेंगे ये शहर वीराने मे
हम लिख रहे होंगे कोई कविता अपने महखाने मे ,
उम्र गुजर जायेंगे जब ,हो जायेंगे जुदा जब
जाने ये दीमक केसे पहुच जायेंगे उन पन्नो मे,
फटी पन्नो को देखकर समझेंगे लोग
कोई कवी भी था इसे ज़माने मैं
किसी गरीब खाने मे
पी रहे होंगे आधी आधी चाय
किसी टूटी आशियाने मे
गुजरते लोग सोचेंगे कितना है हम आवारा
मगर वो क्या जाने दर्द ए दिल इसे ज़माने मे ,
रात होगी कब्र बन जायेंगे ये शहर वीराने मे
हम लिख रहे होंगे कोई कविता अपने महखाने मे ,
उम्र गुजर जायेंगे जब ,हो जायेंगे जुदा जब
जाने ये दीमक केसे पहुच जायेंगे उन पन्नो मे,
फटी पन्नो को देखकर समझेंगे लोग
कोई कवी भी था इसे ज़माने मैं